Sunday, December 28, 2008

भगवान् क्या है। क्या यह एक कल्पना है या इंसानों की हर कल्पना को पूरा करने की एक ऐसी अज्ञात शक्ति जिसे इंसान अपनी भक्ति से जाग्रत कर लेता है। यह शक्ति चाहे कैसी हो हर इंसान इससे जुडा है। हर मजहब इससे अछूता नहीं है। जब निराशा के बादल मंडराने लगते है, बनते काम बिगड़ने लगतें है। तब हर आम और ख़ास ईश्वर रूपी शक्ति के आगे नतमस्तक हो जाता है। जो नास्तिकता का चोला पहनें है वे भी यदाकदा सर्वशक्तिमान को याद करना नहीं भूलते हाँ उनके स्वर जरूर बदले होते है। इन स्वरों में छिपा होता है असफलताओं का ठीकरा नसीब के सिर। गीता में भी कहा गया है। अपना कर्म करो फल की इच्छा मत करो।

2 comments:

मीत said...

अच्छा लिखते हैं आप...
लिखते रहें...
---मीत

निर्मला कपिला said...

aaj aapka blog dekhaa achaa laga likhte rhiye