Sunday, December 21, 2008

नौकरी

अमित बाबु आज ऑफिस से आकर बेहद खिन्न थे. रात भर दिमाग में यही ख्याल आते रहे आख़िर बॉस है तो जो कहेंगे वह सहन करूंगा क्या पूरा दिन महनत करता हूँ फ़िर भी दूसरो के सामने जलील करते रहते हैं. मैं चमचागिरी नहीं कर सकता हूँ मेरे नेचर में ही नहीं है में क्या करू . रात भर चिंतन करने के बाद सुबह अमित ऑटो में बैठा और सोचता रहा. अचानक ऑटो रुकने पर उसकी तंद्रा भंग हुई. वह नए ऑफिस में आया और इंटरव्यू की कतार मैं खडा हो गया. अचानक उसकी जैसे नींद सी टूटी उसे एक कर्कश आवाज सुनाई दी. गुप्ता जी अब तो हद है, हमने आपके बच्चे की बीमारी का ठेका नहीं ले रखा है. माना आप को चालीश साल हो गए यहाँ नौकरी करते पर इसका ये मतलब तो नहीं हम आपको अपने सर पर बैठाएं ये सुनते ही अमित नींद से जागा वह कतार से निकल कर तेजी से सड़क पर आया और ऑटो पकड़ कर निकल पड़ा अपने ऑफिस की और. आख़िर उसे नौकरी पर देर जो हो रही थी. सब जगह एक ही हाल है. इंसान की मजबूरिया उसे उन हालातों से से सम्जोह्ता करने को मजबूर कर देते हैं जिन्हें उसके सिध्दांत नकारते हैं. आख़िर यही तो जिन्दगी है.

2 comments:

Varun Kumar Jaiswal said...

अरे भाई नौकरी का तो दूसरा नाम ही मजबूरी है |

Dev said...

First of all Wish U Happy New Yewr..

Sundear Rachana...

Badhi...