Friday, December 12, 2008
माँ
माँ.. यह सिर्फ़ एक वाक्य नही पूरी कायनात की शक्ति इसमे शामिल है. माँ का आँचल उस बरगद के समान है, जिसकी छाँव में बैठ कर हर ख़ास और आम अपने सारे दुःख भूल अतुल आनंद प्राप्त करता है. माँ तुम नही हो तो सारी दुनिया बेमाने है. माँ... आप क्यों चली गयीं. माँ में जानता हूँ हर इंसान कुदरत के नियमों से बंधा है, दिमाग इसे मानता है पर दिल तेरी यादों से मजबूर है. माँ अब तो बहुत साल हो गए तुझे सिर्फ़ तस्वीर और आकाश में देखते हुए. या तब जब मेरे ख्वावों में आकर आप मुझे मेरे कर्तव्यों का बोध कराती हो. माँ.. बहुत याद आती है जब मदर डे पर सभी साथी अपने माँ को तोहफे देते है तब में तेरी तस्वीर के आगे खड़े होकर अपने अश्कों का तोहफा देता हों और आप मुझे वहीं से अपना कर्म करने की हिम्मत देती हों. माँ.. तुम बहुत याद आती हो. मुझे हे नही हर उस बेटे को जो माँ को प्यार करता है.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment