Sunday, December 28, 2008
भगवान् क्या है। क्या यह एक कल्पना है या इंसानों की हर कल्पना को पूरा करने की एक ऐसी अज्ञात शक्ति जिसे इंसान अपनी भक्ति से जाग्रत कर लेता है। यह शक्ति चाहे कैसी हो हर इंसान इससे जुडा है। हर मजहब इससे अछूता नहीं है। जब निराशा के बादल मंडराने लगते है, बनते काम बिगड़ने लगतें है। तब हर आम और ख़ास ईश्वर रूपी शक्ति के आगे नतमस्तक हो जाता है। जो नास्तिकता का चोला पहनें है वे भी यदाकदा सर्वशक्तिमान को याद करना नहीं भूलते हाँ उनके स्वर जरूर बदले होते है। इन स्वरों में छिपा होता है असफलताओं का ठीकरा नसीब के सिर। गीता में भी कहा गया है। अपना कर्म करो फल की इच्छा मत करो।
Sunday, December 21, 2008
नौकरी
अमित बाबु आज ऑफिस से आकर बेहद खिन्न थे. रात भर दिमाग में यही ख्याल आते रहे आख़िर बॉस है तो जो कहेंगे वह सहन करूंगा क्या पूरा दिन महनत करता हूँ फ़िर भी दूसरो के सामने जलील करते रहते हैं. मैं चमचागिरी नहीं कर सकता हूँ मेरे नेचर में ही नहीं है में क्या करू . रात भर चिंतन करने के बाद सुबह अमित ऑटो में बैठा और सोचता रहा. अचानक ऑटो रुकने पर उसकी तंद्रा भंग हुई. वह नए ऑफिस में आया और इंटरव्यू की कतार मैं खडा हो गया. अचानक उसकी जैसे नींद सी टूटी उसे एक कर्कश आवाज सुनाई दी. गुप्ता जी अब तो हद है, हमने आपके बच्चे की बीमारी का ठेका नहीं ले रखा है. माना आप को चालीश साल हो गए यहाँ नौकरी करते पर इसका ये मतलब तो नहीं हम आपको अपने सर पर बैठाएं ये सुनते ही अमित नींद से जागा वह कतार से निकल कर तेजी से सड़क पर आया और ऑटो पकड़ कर निकल पड़ा अपने ऑफिस की और. आख़िर उसे नौकरी पर देर जो हो रही थी. सब जगह एक ही हाल है. इंसान की मजबूरिया उसे उन हालातों से से सम्जोह्ता करने को मजबूर कर देते हैं जिन्हें उसके सिध्दांत नकारते हैं. आख़िर यही तो जिन्दगी है.
Friday, December 12, 2008
माँ
माँ.. यह सिर्फ़ एक वाक्य नही पूरी कायनात की शक्ति इसमे शामिल है. माँ का आँचल उस बरगद के समान है, जिसकी छाँव में बैठ कर हर ख़ास और आम अपने सारे दुःख भूल अतुल आनंद प्राप्त करता है. माँ तुम नही हो तो सारी दुनिया बेमाने है. माँ... आप क्यों चली गयीं. माँ में जानता हूँ हर इंसान कुदरत के नियमों से बंधा है, दिमाग इसे मानता है पर दिल तेरी यादों से मजबूर है. माँ अब तो बहुत साल हो गए तुझे सिर्फ़ तस्वीर और आकाश में देखते हुए. या तब जब मेरे ख्वावों में आकर आप मुझे मेरे कर्तव्यों का बोध कराती हो. माँ.. बहुत याद आती है जब मदर डे पर सभी साथी अपने माँ को तोहफे देते है तब में तेरी तस्वीर के आगे खड़े होकर अपने अश्कों का तोहफा देता हों और आप मुझे वहीं से अपना कर्म करने की हिम्मत देती हों. माँ.. तुम बहुत याद आती हो. मुझे हे नही हर उस बेटे को जो माँ को प्यार करता है.
Sunday, November 30, 2008
मुंबई ही नही दिल भी दहले
बुधवार का दिन हर इंसान के लिए खौफ भरा रहा। मैं टीवी देख रहा था की अछानक सभी न्यूज़ चैनल पर मुंबई पर आतंक की कहानी आने लगीं। जो भी टीवी देख रहा था वो सिर्फ़ यही जानना चाहता था की आख़िर ये आतंकवादी आए कैसे। मेरे पत्रकार मन के लिए एक ख़बर थी पर एक इंसान के तौर पर मेरा मन रो रहा था। रातभर टीवी पर निगाह रही। सनिवार का दिन। मुंबई आतंकवादियों की दहसत से मुक्त। कई इंसानों का खून जवानो की सहादत काम आयी। फ़िर सुरू हुआ सलामी देने और आरोपों का दौर।
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